बौद्धग्रन्थ
अंगुत्तरनिकाय में सोलह महाजनपदों का उल्लेख किया गया है। इस ग्रन्थ में दी गई
सूची इस प्रकार है-काशी, कोशल, अंग, मगध, वज्जि या वृज्जि,मल्ल,चेदि या चेतिय, वत्स या वंश, कुरु, पांचाल, मत्स्य या मच्छ, शूरसेन, अस्मक या अश्मक, अवन्ति, गान्धार और कम्बोज।
महावस्तु में भी इस
प्रकार की सूची मिलती है लेकिन इसमें गान्धार और कम्बोज के स्थान पर शिबि (पंजाब
या राजपूताना) तथा दर्शाण (मध्य भारत) का उल्लेख किया गया है।
जैन ग्रन्थ (भगवीतय सूत्र) में भी सोलह राज्यों का जिक्र किया गया है। भगवतीसूत्र की सूची और अंगुत्तरनिकाय की सूची में कुछ अन्तर है। भगवतीसूत्र में जिन सोलह महाजनपदों का उल्लेख किया गया है वे इस प्रकार है- अंग, बंग, मगह (मगध), मलय, मालवा, अच्छ, वच्छ (वत्स)] कोच्छ (कच्छ), लाढ (लाट या राधा), पाढ (पाण्ड्य या पौण्ड्र), वज्जि, मोलि (मल्ल), काशी, कोशल, अवाह और सम्भुत्तरा (संहोत्रा)। दोनों सूचियों में अंग, मगध, वत्स, वज्जि, काशी, कोशल 06 महाजनपद समान रूप से उल्लिखित हैं। मालवा की पहचान अवन्ति से]मोलि की मल्ल से की गई है। बाकी महाजनपद नए है। ये राज्य सुदूर पूर्व और दक्षिण में स्थित थे।
महाजनपद
उत्तर वैदिक युग में जनपद
अब महाजनपद में बदल गए। 15 महाजनपद नर्मदा नदी से उत्तर की ओर तथा एक मात्र महाजनपद अश्मक
नर्मदा नदी के दक्षिण में स्थित था। बौद्ध
ग्रन्थ अंगुत्तरनिकाय के अनुसार 16 महाजनपद थे]बौद्ध ग्रन्थ महावस्तु
तथा जैनग्रन्थ भगवती सूत्र से भी 16 महाजनपदों की सूचना मिलती है]किन्तु महावस्तु में
गान्धार और कम्बोज के बदले पंजाब में शिवा तथा मध्य भारत में दर्शन का उल्लेख है।
उसी तरह भगवती सूत्र में बंग एवं मलय जनपदों का उल्लेख है। चुल्लनिद्धेश में 16 महाजनपदों का उल्लेख है।
इसमें कम्बोज की जगह कलिंग क तथा गांधार की जगह योन का उल्लेख है।
काशी- उत्तर में वरुणा
तथा दक्षिण में असि नदियों से घिरे वाराणसी]काशी की राजधानी थी।
गुहिल जातक के अनुसार यह नगरी 12 योजन में फैली थी। आरम्भ में काशी सबसे
शक्तिशाली राज्य था परन्तु बाद में उसने कोशल की शक्ति के सामने आत्मसमर्पण कर
दिया। कोशल के राजा कंस ने काशी को विजित कर अपने राज्य में मिला लिया। 23 वें जैन तीर्थकर
पार्श्वनाथ के पिता अश्वमेन काशी के राजा थे।
कोशल- वर्तमान अवध का
क्षेत्र]आधुनिक फैजाबाद मण्डल का
क्षेत्र]प्राचीन काल में कोशल के
नाम से जाना जाता था। सरयू नदी कोशल को दो भागों में बाँटती थी। उत्तरी कोशल की
आरम्भिक राजधानी श्रावस्ती थी जिसकी पहचान उत्तर प्रदेश के गोण्डा और बहराइच जिलों
की सीमा पर सहेत महेत स्थान से की जाती है। बाद में राजधानी साकेत या अयोध्या हो
गई। दक्षिण कोशल की राजधानी कुशावती थी। कोशल के राजा प्रसेनजीत ने अपनी बहन
महाकोशला अथवा कोशला देवी का विवाह मगध के शासक बिम्बिसार से कर दिया एवं दहेज में
काशी ग्राम दिया परन्तु अजातशत्रु के समय कोशल एवं मगध के बीच संघर्ष छिड़ गया, जिसका विवरण संयुक्तनिकाय
के कोशल सूक्त में मिलता है]परन्तु प्रसेनजीत ने मगध से सन्धि कर ली
एवं अपनी पुत्री वजीरा का विवाह अजातशत्रु के साथ विवाह कर दिया।
संयुक्तनिकाय से जानकारी
मिलती है]कि प्रसेनजीत के पुत्र
विडुढ़व या विधोवा ने मन्त्री दीर्घचारायण के साथ मिलकर प्रसेनजीत के विरुद्ध
षड्यन्त्र रचा। प्रसेनजीत ने भागकर मगध में शरण लेनी चाही]किन्तु थकान के कारण
राजगह के समीप उसकी मृत्यु हो गई। विधोवा मगध पर आक्रमण करने ही वाला था कि राप्ती
नदी में बाढ़ आने के कारण विधोवा तथा उसकी सेना डूब गई। उसके बाद अजातशत्रु ने कोशल
को मगध में मिला लिया।
अंग- वर्तमान भागलपुर तथा
मुंगेर जिले का क्षेत्र। इसकी राजधानी चम्पा थी। महाभारत तथा पुराणों में चम्पा का
प्राचीन नाम मालिनी मिलता है। दीर्घनिका के अनुसार महागोविन्द ने इस नगर के
निर्माण की योजना प्रस्तुत की। बिम्बिसार ने अंग के शासक ब्रह्मदत्त को हराकर अंग
को मगध में मिला लिया और अजातशत्रु को अंग का उपराजा नियुक्त किया।
वज्जि- यह आठ राज्यों का
एक संघ था। इन आठ राज्यों के संघ में वैशाली लिच्छिवी. मिथिला के विदेह तथा
कुण्डग्राम के ज्ञातृक प्रमुख थे। इनके अतिरिक्त अन्य 5 और थे जैसे उग्र भोग, इक्ष्वाकु, वज्जि एवं कौरव्य। पहले
वज्जि राजतन्त्र था, बाद में गणतन्त्र स्थापित
हुआ।
मल्ल-वज्जि की तरह यह भी
एक संघ था]जिसमें पावा (पडरौना) तथा
कुशीनारा (कसया) के मल्लों की शाखाएँ सम्मिलित थीं। मल्ल जनपद का क्षेत्र पूर्वी
उत्तर प्रदेश देवरिया जिला था। वज्जि संघ की भाँति यहाँ भी प्रारम्भ में राजतन्त्र
था]जो बाद में गणतन्त्र में
परिवर्तित हो गया। कुश जातक में ओक्काक को वहाँ का राज बताया गया है।
चेदि- चेदि महाजनपद की
राजधानी सूक्तमती अथवा सोथीवती थी। इसका महत्त्वपूर्ण शासक शिशुपाल था]जिसकी चर्चा महाभारत में
हुई है। जिसका वध कृष्ण द्वारा किया गया। चेतिय जातक में यहाँ के एक राजा का नाम 'उपचर' मिलता है।
वत्स-प्राचीन काल में
आधुनिक इलाहाबाद तथा बाँदा के जिले वत्स महाजनपद के नाम से जाने जाते थे। इस
महाजनपद की राजधानी इलाहाबाद के पास कौशाम्बी में थी। वत्स लोग वही कुरुजन थे जो
हस्तिनापुर छोड़कर कौशाम्बी में आकर बस गए थे।
जैसे कि उत्खननों से पता चलता है ईसा पूर्व पाँचवीं सदी में राजधानी कौशाम्बी की मिट्टी से किलेबन्दी की गई थी। बौद्ध काल में यहाँ पौरव वंश का शासन था जिसका शासक उदयन था। अवन्ति के शासक प्रद्योत की कन्या वासवदत्ता के साथ उदयन के विवाह होने के साथ ही अवन्ति एवं वत्स में चली आ रही शत्रुता समाप्त हो गई। इसी कहानी को आधार बनाकर भास ने स्वप्नवासवदत्तम् नाटक की रचना की। उदयन पहले जैन मतावलम्बी था बाद में बौद्ध भिक्षु पिण्डोला भारद्वाज के निर्देशन में बौद्ध हो गया। वत्स महाजनपद में ही घोषिताराम विहार है]जिसका निर्माण यहाँ के श्रेष्ठि घोषित ने किया था। कालान्तर में वत्स पर अवन्ति का शासन स्थापित हो गया।
कुरु-मेरठ]दिल्ली तथा थानेश्वर के भाग में कुरु महाजनपद अवस्थित था। महाभारत काल में हस्तिनापुर इसकी राजधानी थी। बौद्ध काल में यहाँ कौरव्य नामक शासक शासन करता था।
पांचाल-आधुनिक रुहेलखण्ड
के बदायूँ, बरेली तथा फर्रुखाबाद के
जिलों को मिलाकर पांचाल बना था। इसके दो भाग थे। उत्तरी पांचाल का राजधानी
अहिच्छत्र तथा दक्षिणी पांचाल की राजधानी काम्पिल्य थी।
मत्स्य-यह महाजनपद
राजस्थान के जयपुर]अलवर तथा भरतपुर के
अन्तर्गत था। इसकी राजधानी विराट नगर थी. जो विराट के द्वारा स्थापित था।
शूरसेन- यह आधुनिक ब्रजमण्डल में स्थित था। इसकी राजधाना मथुरा थी। प्राचीन लेखकों ने इसे सूरसेनोई तथा उसकी राजधानी को मेथोरा कहा। महाभारत तथा पुराण यदुवंश को यहाँ का शासक वंश बताते हैं। बौद्ध काल में यहाँ कस शासक अवन्तिपुत्र था। मज्झिमनिकाय के अनुसार अवन्तिपुत्र का जन्म अवन्ति नरेश प्रद्योत की कन्या से हुआ था।
गान्धार- वर्तमान में
पेशावर तथा रावलपिण्डी जिलों में स्थित था। इसकी राजधानी तक्षशिला थी। रामायण से
जानकारी मिलती है कि भरत के पुत्र तक्ष ने इसकी स्थापना की थी। पुष्कलावती इसका
दूसरा प्रमुख नगर था। तक्षशिला व्यापार एवं शिक्षा का प्रमुख केन्द्र था।
(तक्षशिला में ही जीवक]चाणक्य तथा प्रसेनजीत ने शिक्षा पाई थी।) छठी सदी ई.पूर्व में
यहाँ पुष्कासिरीन अथवा पुक्कुस शासन करता था। जिसका मगध के शासक विम्बिर के साथ
मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध था। पुक्कुस ने विम्बिसार के पास दूत भेजा था। कालान्तर में
गान्धार पर हखाममिनी वंश के शासक डेरियस का अधिकार हो गया था।
कम्बोज-यह दक्षिण-पश्चिम कश्मीर तथा अफगानिस्तान के भाग में स्थित था। इसकी राजधानी राजपुर या हाटक थी। कालान्तर में यहाँ राजतन्त्र के स्थान पर संघ राज्य स्थापित हो गया। कौटिल्य या चाणक्य ने कम्बोजों को वार्ताशस्त्रोपजीवी कहा है]अर्थात् कृषि, पशुपालन, व्यापार तथा शास्त्र द्वारा जीविका चलाने वाले। कम्बोज अपने घोड़ों के लिए बहुत प्रसिद्ध था। चन्द्रवर्द्धन तथा सुदक्षिण यहाँ के दो प्रमुख शासक हुए। प्रारम्भ में यहाँ राजतन्त्र था]बाद में गणतन्त्र स्थापित हो गया।
महाजनपद एवं राजधानी
क्र.सं. | महाजनपद | राजधानी |
---|---|---|
1. | कोशल | श्रावस्ती/अयोध्या |
2. | काशी | वाराणसी |
3. | अंग | चम्पा |
4. | मगध | गिरिव्रज(राजगृह) |
5. | वज्जि | विदेह एवं मिथिला |
6. | मल्ल | कुशीनारा/पावा |
7. | चेदि | सुक्ति (सुक्तिमती) |
8. | वत्स | कौशाम्बी |
9. | कुरु | इन्द्रप्रस्थ |
10. | पांचाल | उत्तरी पांचाल (अहिच्छत्र)] दक्षिण पांचाल (काम्पिल्य) |
11. | मत्स्य | विराट नगर |
12. | शूरसेन | मथुरा |
13. | अश्मक | पोतन या पोटिल |
14. | अवन्ति | उत्तरी अवन्ति(उज्जयनी) एवं दक्षिणी अवन्ति (महिष्मती) |
15. | गान्धार | तक्षशिला |
16. | कम्बोज | राजपुर या हाटक |
अवन्ति-यह पश्चिम तथा मध्य मालवा के क्षेत्र में बसा हुआ था]इसके दो भाग थे। उत्तरी भाग की राजधानी उज्जैन तथा दक्षिणी भाग की राजधानी महिष्मती थी। वेत्रवती नदी इन दोनों के बीच में बहती थी। गौतम बुद्ध के समय यहाँ का राजा प्रद्योत था। महावग्गजातक में प्रद्योत को उसकी कठोर नीति के कारण चण्डप्रद्योत कहा जाता था। मगध के समान हाथी की प्राप्ति तथा विकसित लौह प्रौद्योगिकी के कारण यह भी काफी शक्तिशाली था। प्रद्योत के पाण्डु रोग से ग्रसित होने पर बिम्बिसार ने अपने राजवैद्य जीवक को उपचार हेतु भेजा। परिशिष्टपर्वन से हमें जानकारी होती है कि प्रद्योत के पुत्र पालक ने वत्स पर आक्रमण कर उसे अवन्ति में मिला लिया। बाद में अवन्ति को शिशुनाग में मगध में मिला लिया।
मगध- बुद्धकालीन राजतन्त्रों में मगध सर्वाधिक शक्तिशाली सिद्ध हुआ आगे चलकर सभी राज्य इसी में मिला लिये गये जिसमें गया, पाटलिपुत्र, शाहाबाद, नालन्दा के कुछ भाग इस महाजनपद में शामिल थे। इसकी प्रारम्भिक राजधानी राजगृह या गिरिव्रज थी]बाद में इसकी राजधानी पाटलिपुत्र बनी। ऐतिहासिक कला के मगध साम्राज्य की महत्ता का वास्तविक संस्थापक बिम्बिसार था। वह महात्मा बुद्ध का मित्र एवं संरक्षक था। बिम्बिसार एक महान विजेता था। उसने अपने पड़ोसी राज्य अंग पर आक्रमण कर उसे जीता था अपने साम्राज्य में मिला लिया।
अश्मक- इसकी राजधानी पोतन अथवा पोटिल थीं अश्मक ही एकमात्र ऐसा महाजनपद था जो नर्मदा नदी के दक्षिण स्थित था। यह गोदावरी नदी के तट पर स्थित था। अवन्ति ने इसे जीतकर अपने साम्राज्य में मिला लिया।
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