CLASSIFICATION OF FUNDAMENTAL RIGHT
1 समता का अधिकार (right of equality )
2 स्वतंत्रता का अधिकार (right of freedom )
3 शोषण के विरुद्ध अधिकार (right against
exploration)
4 धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (right to religious freedom )
5 सांस्कृतिक एवं शिक्षा का अधिकार (cultural and educational right)
6 संपत्ति का अधिकार (right to property remove by the 44 amendment of the
constitution in in 1978)
7 संविधान संवैधानिक उपचारों का अधिकार (right to constitutional remedies )
समता का अधिकार (right of equality )
भारतीय संविधान को भाग तीन के अंतर्गत मौलिक अधिकारों का विषद विवेचन किया गया है किंतु मौलिक अधिकारों की परिभाषा नहीं दी गई है तथापि मौलिक अधिकार वे अधिकार होते हैं जो व्यक्ति के नैतिक बौद्धिक अध्यात्मिक विकास के लिए आवश्यक होते हैं।
कुल 23 अनुच्छेदों में मौलिक अधिकारों के बारे में वर्णन किया गया है
अनुच्छेद 12 - राज्य की परिभाषा भारत सरकार भारतीय संसद राज्य सरकार राज्यों की व्यवस्थापिका है अन्य सरकारी सोर्स।
अनुच्छेद 13 - राज्य कोई ऐसी विधि कानून न बनाए जो हमारी हमारे मौलिक अधिकारों को कम करें या न्यून करें यदि राज्य कोई ऐसी कोई विधि बनाती है तो वह विधि उच्च मात्रा तक शून्य घोषित की जाएगी जिस मात्रा तक हमारे मौलिक अधिकारों को कम करने न्यू न करने का प्रयास किया गया है सर्वोच्च न्यायालय किसी शक्ति को न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति कहा जाता है।
Right to equality समानता का अधिकार
अनुच्छेद 14 (a) विधि के समक्ष समानता
equality before law there is no man above law
विधि के समक्ष समानता वाक्य ब्रिटेन
से लिया गया है।
अनुच्छेद 14 (b) equal protection
of love विधियों का समान संरक्षण
विधियों का समान संरक्षण वाक्य अमेरिका
से लिया गया है नोट एक ग्रुप के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा लेकिन अलग ग्रुप के
ग्रुप के साथ भेदभाव किया जा सकता है
It means no no man ए बाबू and
every person whatever his are her social status is subject to the judiciary of
the court it mean that all person in similar condition circumstances shall be
treated a lie
There can be discrimination
between the group but not given the group the states stand for the welfare all
section of the social society if can make certain discrimination in fear of
those who are the less brvillaged.
अनुच्छेद 14 (अपवाद) समानता के नियम
के अपवाद भी हैं जैसे राष्ट्रपति राज्यपाल विदेशी राज नायक सुप्रीम कोर्ट तथा हाई कोर्ट
के जज संसद तथा विधान मंडलों के सदस्यों को
कुछ विशेष अधिकार दिए गए हैं इसके अतिरिक्त समाज के विभिन्न वर्गों के संबंध में भिन्न-भिन्न
कानून बनाए जा सकते हैं।
अनुच्छेद 15 (a)
इसमें यह प्रविधान किया गया है कि राज्य नागरिकों के साथ
धर्म मूल वंश जाति लिंग जन्म स्थान अथवा इनमें से किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं बढ़ते
जाते हैं
अनुच्छेद 15 (b) सार्वजनिक स्थानों
पर भी जनता को जाने से नहीं रोका जाएगा।
अनुच्छेद 15 (c) इसके अनुसार राज्य स्त्रियों
और बच्चों के लिए विशेष व्यवस्था कर सकता है। उदाहरण के लिए हम देखते हैं कि संसद में
राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम 1990 में पारित किया इसके तहत 1992 में प्रथम महिला आयोग
(जयंती पटनायक थी)का गठन किया।
अनुच्छेद 15(d) एक अपवाद के रूप में
हमारे सामने आता है इसके इसमें यह व्यवस्था है कि सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े
वे लोगों के लिए या SC ST के लिए विशेष पर
विधान कर सकता है अनुच्छेद 15(d) को प्रथम संविधान संशोधन अधिनियम 1951 के द्वारा जोड़ा
गया।
चंपाकम दोराईराजन VS तमिलनाडृ
यह संशोधन मद्रास बनाम चंपा कम दोराई
राजन 1951 में दिए गए निर्णय निर्णय को प्रभावी बनाने लाया गया भारत में आरक्षण
50% से ज्यादा नहीं हो सकता है।
बालाजी बनाम मैसूर 1963
राज्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट
ने यह निर्णय किया कि आरक्षण की सीमा 50% से अधिक नहीं हो सकती है इस बाद में न्यायालय
में क्रीमी लेयर के सिद्धांत को नहीं माना। मंडल आयोग के मामले में इंदिरा साहनी बनाम
भारत संघ 1992 भी सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय निर्णित किया आरक्षण की सीमा 50% से अधिक
हो ही नहीं सकती इस बाद में क्रीमी लेयर के सिद्धांत को मान लिया गया।
अनुच्छेद 16 लोक नियोजन के विषय में
अवसर की समानता
अनुच्छेद 16 (a) राज्य के अधीन किसी
पद पर नियोजन यान किसे संबंधित विषयों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समानता होगी।
अनुच्छेद 16 (b) राज्य के अधीन किसी
नियोजन या पद के संबंध में केवल धर्म मूल वंश जाति लिंग उद्भव जन्म स्थान या निवास
या इनमें से किसी आधार पर ना तो कोई नागरिक अपात्र होंगे और ना ही में कोई भेदभाव किया
जाएगा।
अनुच्छेद 16 (c) संसद को यह शक्ति प्रदान
करता है वह विधि बनाकर सरकारी सेवाओं में नियुक्ति के लिए उस राज्य में निवास की अहर्ता
बिहित (लागू) कर सकता है।
अनुच्छेद 16 (d) राज्य को सरकारी सेवाओं
में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण करने की शक्ति प्रदान करता है।
अनुच्छेद-17 अस्पृश्यता का अन्त-इसके
द्वारा छुआछुत जैसा मान्यताओं या भावनाओं का अंत करने का प्रयास किया गया है और अगर
कोई इस प्रकार का कार्य करता है तो विधि द्वारा दण्डित होगा।
अस्पृश्यता
का अन्त करने के लिए कानून बनाने का अधिकार संसद को दिया गया है। इसी को ध्यान में
रखते हुए 1955 से अस्पृश्यता अपराध अधिनियम 1955 पारित किया गया।
बाद
में इसे 1976 में संशेधित करके इसके नाम में परिवर्तन किया गया और अब यह ‘‘सिविल अधिकार
संरक्षण अधिनियम 1976’’ के नाम से जाना जाता है।
अनुच्छेद 18 उपाधियों का अंत- वस्तुतः
इस अनुच्छेद को इस लिए जोड़ा गया क्योकि ब्रिटिश साम्राज्यवादियों ने कुछ लोगो को अनेक
उपाधियाँ अपना विश्वासपात्र बनाने के लिए प्रदान की थी।
उपाधियों
के अन्त का मतलब यह नही है कि शौर्य (सेना) और विद्या (शिक्षा) से सम्बन्धित उपाध्यिँ
नही दी जायेगी। इस प्रकार के सम्मान पूरी तरह वैध है, इसलिए सैनिक सेवा के लिए परमवीर
चक्र, अशोक चक्र, वीर चक्र तथा महावीर चक्र देने पर कोई प्रतिबन्ध नही है। संविधान द्वारा किये
गए प्रतिषेध के बावजूद विशिष्ट सामाजिक सेवा करने वाले व्यक्तियो को भारतरत्न, पदमविभूषण,
पदमभूषण, एवं पदम्श्री पुरस्कार देने का प्रारम्भ भारत सरकार द्वारा 1959 से किया गया।
1977 मे जनता पार्टी की सरकार के द्वारा 1980 में प्रारम्भ हुआ। सेना का सबसे बड़ा पुरस्कार
परमवीर चक्र है। शांति काल का सबसे बड़ा पुरस्कार अशोक चक्र है।
स्वतंत्रता का अधिकार (अनु. 19 से
22)
अनुच्छेद 19 वाक्, स्वतन्त्रता आदि
विचारक कुछ अधिकारो का संरक्षण। (इसी में प्रेस की स्वतंत्रता निहित है।)
अनुच्छेद 19(a) वाक्, भाषण और विचार
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता।
अनुच्छेद 19(b) शान्तिपूर्वक और निरायुद्ध
सम्मेलन का अधिकार।
अनुच्छेद 19(c) संगम या संघ बनाने का
अधिकार।
अनुच्छेद 19(d) भारत के राज्यक्षेत्रों
के भीतर अबाध संचरण (बिना किसी बाधा के आने-जाने) का अधिकार।
अनुच्छेद 19(e) भारत के राज्यक्षेत्र
के किसी भाग में निवास करने और बस जाने की स्वतंत्रता।
अनुच्छेद 19(f) सम्पत्ति का अधिकार।
(44वें संविधान संशोधन 1978 में हटाया गया।)
अनुच्छेद 19(g) कोई वृत्ति (कार्य),
कोई उपजीविका कारोबार या व्यापार करने की स्वतंत्रता।
अनुच्छेद 19(h) सूचना का अधिकार।
अनुच्छेद 20 अपराधो के दोष सिद्धि के सम्बन्ध में संरक्षण
अनुच्छेद 20(a) कार्योत्तर विधियों से संरक्षण : अनुच्छेद 20 का खण्ड ए यह उपबन्धित करता है कि व्यक्ति केवल किसी प्रवृत विधि के अन्तर्गत विहित अपराध के लिए दोषी ठहराया जायेगा अन्य अपराध के लिए नही।
अनुच्छेद 20(b) दोहरे दण्ड से संरक्षण : इसका तात्पर्य है कि किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए एक बार से अधिक अभियोजित और दण्डित नही किया जायेगा।
अनुच्छेद 20(c) आत्म-अविशंसन से संरक्षण : किसी भी व्यक्ति को, जिस पर कोई आरोप लगाया गया है स्वयं अपने विरूद्ध साक्ष्य देने के लिए बाध्य नही किया जायेगा।
अनुच्छेद 21 प्राण व दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार : यह उपबन्धित करता है कि ‘‘किसी व्यक्ति को उसके प्राण या दैहिक स्वाधीनता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जायेगा अन्यथा नही।
अनुच्छेद 21(a) शिक्षा का निशुल्क अधिकार (86 वा संशोधन 2002) संविधान के 86वे संविधान संशोधन अधिनियम 2002 के द्वारा एक नया अनुच्छेद 21ए जोड़ा गया। अनुच्छेद 21(a) यह उपबन्धित करता है कि राज्य ऐसी रिति से जैसा कि विधि बनाकर निर्धारित करे 06 वर्ष की आयु से 14 वर्ष के आयु के सभी बच्चो के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा उपबन्ध करायेगी।
अनुच्छेद 22 कुछ दशाओं में गिरफ्तारी और निरोध में संरक्षण : यह निवारत निरोध से सम्बन्धित व्यवस्था है। पुनः इसमें गिरफ्तार किए गये व्यक्ति को बहुत से अधिकार प्रदान किये गए है और इसका पालन सरकार द्वारा उचित रूप से नही किया जाता है तो पूरी की पूरी गिरफ्तारी असंवैधानिक करार दी जा सकती है यह अधिकार निम्नलिखित है-
1 गिरफ्तारी के कारण जानने का अधिकार ।
2 यथाशीघ्र अपने मनपसंद वकील से परामर्श करने का अधिकार।
3 24 घण्टे के अन्दर किसी न्यायाधीश के सामने पेश करने का अधिकार।
अनुच्छेद 22 का संरक्षण निम्नप्रकार के व्यक्तियों को नही प्राप्त है।
1 शत्रु देश के निवासियों को।
2 निवारत निरोध (अपराध करने से रोकना) अधिनियम के अन्तर्गत व्यक्तियों को।
गिरफ्तार किए गए व्यक्तियों को अनुच्छेद 20 एवं 22 में संरक्षण प्रदान करता है।
शोषण के विरूद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 से 24)
अनुच्छेद 23 मानव के क्रय विक्रय और दुर्व्यापार और बेगार पर रोक।
अनुच्छेद 24 कारखानो आदि में बालको के नियोजन पर (रोक) प्रतिषेध।
14 वर्ष से कम आयु के बच्चो को किसी कारखानो या जोखिम भरे कामो में नहीं लगाया जाएगा।
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 से 28)
अनुच्छेद 25 अन्तःकरण (आत्मा) की और धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता। लेकिन इस स्वतंत्रता पर लोक व्यवस्था, लोक स्वास्थ तथा सदाचार के आधार पर प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है।
नोटः- कृपाण धारण करना तथा लेकर चलना सिक्ख धर्म मानने का अनिवार्य अंग होगा।
अनुच्छेद 26 धार्मिक कार्यो की प्रबन्ध की स्वतंत्रता : इसमें यह व्यवस्था की गयी है कि 1. सार्वजनिक व्यवस्था 2. लोक स्वास्थ 3. सदाचार के अधीन रहते हुए प्रत्येक धार्मिक सम्प्रदाय को यह अधिकार है कि अपने धार्मिक कार्यो के लिए संस्था की स्थापना करे, कोई सम्पत्ति खरीदे और संस्था के अनुरूप प्रयोग करे।
अनुच्छेद 27 किसी विशिष्ट धर्म कि अभिवृद्धि के लिए करो के संदाय (देना) के बारे में स्वतंत्रता। यह अनुच्छेद यह स्पष्ट करता है कि किसी को किसी धर्म के लिए, कर देने के लिए बाध्य नही किया जा सकता।
संविधान किसी विशेष धर्म पर किए जाने वाले व्यय को कर मुक्त करता है, लेकिन यदि राज्य किसी धार्मिक सम्प्रदाय के लिए कोई कार्य करता है तो, ऐसे कार्य के लिए राज्य उस धार्मिक सम्प्रदाय के लोगो से शुल्क वसूल कर सकता है।
अनुच्छेद 28 सरकारी/ सरकारी सहायता प्राप्त :
- उन शिक्षा संस्थाओ में कोई धार्मिक शिक्षा नही दी जायेगी जो पूर्णतः सरकार की खर्च पर संचालित हो।
- जो शिक्षा संस्था किसी ऐसे ट्रस्ट/न्यास के द्वारा स्थापित की गई है उसमे धार्मिक शिक्षा दी जा सकती है।
- राज्य से मान्यता प्राप्त या राज्य निधि से सहायता प्राप्त किसी शिक्षा संस्था में कोई धार्मिक शिक्षा नही दी जायेगी या उसमे संलग्न स्थान में कोई धार्मिक शिक्षा नही दी जायेगी और न ही किसी की उपासना में उपस्थित होने के लिए बाध्य किया जायेगा।
संस्कृति एवं शिक्षा सम्बन्धी अधिकार
(cultural and educational right)
अनुच्छेद 29 अल्पसंख्यक वर्गो के लिए हितो का संरक्षण भारत के राज्य क्षेत्र एवं किसी भाग के निवासी नागरिको के लिए किसी अनुभाग (खण्ड) जिसकी अपनी भाषा लिपि या संस्कृति है। उसे बनाये रखने का अधिकार होगा।
राज्य द्वारा पोषित या राज्य निधि से सहायता पाने वाले किसी शिक्षा संस्था मे ंप्रवेश से किसी भी नागरिक को केवल धर्म मूलवंश जाति या भाषा के आधार पर वंचित नही किया जायेगा।
अनुच्छेद 30 शिक्षा संस्थाओ की स्थापना और प्रशासन करने (का अल्पसंख्यक) करने का अधिकार
धर्म या भाषा आधारित सभी अल्पसंख्यक वर्गो को अपनी रूचि की शिक्षा संस्थाओ की स्थापना और प्रशासन करने का अधिकार हो।
शिक्षा संस्थाओ को सहायता देने में राज्य किसी शिक्षा संस्था के विरूद्ध इस आधार पर विभेद नही करेगा कि वह धर्म या भाषा पर आधारित किसी अल्पसंख्यक वर्ग के प्रबन्ध में है।
अनुच्छेद 32 ‘‘यदि मुझसे यह पूछा जाये कि संविधान में कौन सा अनुच्छेद विशेष महत्वपूर्ण है जिसके बिना यह संविधान शून्य हो जायेगा। तो मै इसके सिवाय ( अनुच्छेद 32) किसी दूसरे अनुच्छेद का नाम नही लूंगा। यह संविधान की आत्मा है।’’-डॉ. बी.आर. अम्बेडकर
हैबिस कपिस, Habeas Carpus (बन्दी प्रत्यक्षीकरण)- यह याचिका एक आदेश के रूप में होती है। जिसमे न्यायालय गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को गिरफ्तारी की वैधता की जाँच करती है। अगर किसी को गलत तरीको से बन्दी बनाया गया है तो न्यायालय उसे मुक्त करने का आदेश देगा। यह (प्रलेख) याचिका सरकारी अधिकारियो के अतिरिक्त नीजी संगठनो तथा साधारण व्यक्तियो के विरूद्ध भी जारी किया जा सकता है।
मेडमोस, Medamus(परमादेश) किसी व्यक्ति अथवा सार्वाजनिक संस्था को उसके सामाजिक दायित्वो तथा कर्त्तव्यो का पालन करने के लिए जारी करने के लिए किया जाता है।
प्रोहीबीशन, Prohibition(प्रतिषेध) जब निम्न न्यायालय के समक्ष किसी ऐसे मामले कार्यवाही लाम्बित हो जिसकी सूनावाई करने का उसे अधिकार नही है।
इस रिठ को जारी करने का उद्देश्य न्यायालय को उस मामले में कार्यवाही करने से रोकना होगा।
Certiorari (उत्प्रेषण) जब किसी मामले में निम्न न्यायालय ने निर्णय दे दिया हो तो इस प्रलेख के जारी होने के बाद निम्न न्यायालय उसे उच्च न्यायालय में भेज दिया जाता है यदि निम्न न्यायालय आदेश दे दिया होता है तो व निरस्थ हो जाता है।
Quo warranto (अधिकार पृच्छा)- न्यायालय द्वारा किसी व्यक्ति को किसी पद जिसके लिए वछिन्निय नही है ग्रहण करने से रोकने के लिए जारी किया जाता है।
अनुच्छेद 33 सेना के सदस्यो के अधिकारो पर निरबन्धन (रोक) लगाने की संसद की शक्ति।
अनुच्छेद 33 संविधान के भाग तीन का एक अपवाद है इस भाग द्वारा प्रद्दत अधिकारो मे से किसी को शस्त्र बलो की सदस्यो के प्रयोग के सम्बन्ध मे किस मात्रा तक निरबन्धन किया जाये ताकि वे अपने कर्त्तव्यो का उचित पालन कर सके तथा अनुशासन बना रहे।
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