भारतीय संविधान की रचना भारत की संविधान सभा का निश्चित उल्लेख पहली बार भारत शासन अधिनियम 1919 के लागू होने के ठीक बाद 1922 में महात्मा गांधी द्वारा किया गया था।
श्रीमती एनी बेसेन्ट की पहल पर 1922 में ही केन्द्रीय विधानमण्डल के दोनों सदनों के सदस्यों की एक संयुक्त बैठक शिमला में आयोजित की गई जिसमें संविधान के निर्माण के लिए एक सम्मेलन बुलाने का निर्णय लिया।
फरवरी, 1923 में दिल्ली में हुए केन्द्रीय तथा प्रान्तीय विधानमण्डलों के सदस्यों के सम्मेलन में भारत को ब्रिटिश साम्राज्य की स्वशासी डोमिनियनों के समतुल्य रखते हुए संविधान के आवश्यक तत्त्वों की रूपरेखा प्रस्तुत की गई।
24 अप्रैल, 1923 को तेज बहादुर सपू की अध्यक्षता में हुए राष्ट्रीय सम्मेलन में 'कॉमनवेल्थ ऑफ इण्डिया बिल' का प्रारूप तैयार किया गया। यह प्रारूप बिल संशोधित रूप में जनवरी, 1925 में दिल्ली में महात्मा गाँधी की अध्यक्षता में हुए सर्वदलीय सम्मेलन के समक्ष पेश किया गया। तथा बाद में यह प्रारूप समिति के द्वारा प्रकाशित किया गया।
19 मई, 1928 को बम्बई में आयोजित सर्वदलीय सम्मेलन में भारत के संविधान के सिद्धान्त निर्धारित करने हेतु मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की गई।
10 अगस्त, 1928 को इस समिति ने अपनी रिपोर्ट पेश की जो 'नेहरू रिपोर्ट' के नाम से प्रसिद्ध हुई। यह भारतीयों द्वारा अपने देश के लिए संविधान निर्माण का प्रथम प्रयास था।
जून, 1934 में कांग्रेस कार्यकारिणी ने पहली बार संविधान सभा के लिए। औपचारिक रूप से माँग पेश की।
अप्रैल, 1936 में कांग्रेस ने अपने लखनऊ अधिवेशन में एक प्रस्ताव स्वीकार किया जिसमें घोषणा की गई कि किसी बाहरी सत्ता द्वारा थोपा गया कोई भी संविधान भारत द्वारा स्वीकार नहीं किया जाएगा।
1940 के 'अगस्त प्रस्ताव' में ब्रिटिश सरकार ने संविधान सभा की माँग को पहली बार अधिकारिक रूप से स्वीकार किया।
सितम्बर, 1945 में ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत के लिए यथाशीघ्र संविधान निर्माण-निकाय के गठन की घोषणा की गई।
संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसम्बर, 1946 को हुई तथा पुनः 14 अगस्त, 1947 को विभाजित भारत के संविधान सभा के रूप में इसकी बैठक हुई। संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव 1935 में स्थापित प्रान्तीय विधानसभाओं के सदस्यों द्वारा अप्रत्यक्ष विधि से हुआ। संविधान सभा का निर्माण लगभग कैबिनेट मिशन योजना के अनुसार हुआ। कैबिनेट मिशन योजना के अनुसार संविधान सभा के निर्माण हेतु-
(i) प्रत्येक प्रान्त, देशी रियासत या रियासतों के समूह को उनकी जनसंख्या के अनुपात में सीटें आवंटित की गईं। सामान्यतया 19 लाख की जनसंख्या पर एक सीट का अनुपात रखा गया। परिणामस्वरूप प्रत्यक्ष ब्रिटिश शासन वाले प्रान्तों को 292 सीटें तथा देशी रियासतों को न्यूनतम 93 सीटें आवंटित की गईं।
(ii) प्रत्येक प्रान्त की सीटों को तीन प्रमुख समुदायों-मुसलमान, सिख और सामान्य में उनकी जनसंख्या के अनुपात में बाँट दिया गया।
(iii) प्रान्तीय विधानसभाओं में प्रत्येक समुदाय के प्रतिनिधियों का चुनाव समानुपातिक प्रतिनिधित्व तथा एकल संक्रमण मत पद्धति द्वारा हुआ।
(iv) देशी रियासतों के प्रतिनिधित्व हेतु चुनाव-पद्धति उनके परमर्श सेतय की गई।
-3 जून, 1947 की योजना (माउण्टवेटन योजना) के अनुसार विभाजनोपरान्त वे सभी प्रतिनिधि संविधान सभा के सदस्य नहीं रहे जो पाकिस्तान के क्षेत्रों से चुनकर आए थे तथा संविधान सभा के वास्तविक सदस्यों की संख्या घटकर 299 रह गई।
26 नवम्बर, 1949 को संविधान सभा में कुल 284 सदस्य उपस्थित थे जिन्होंने अन्तिम रूप से पारित संविधान पर अपने हस्ताक्षर किए। संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर नहीं हुआ था। संविधान सभा में उस समय के अनुसूचित वर्गों के 26 सदस्य थे तथा सर्वाधिक सदस्य कांग्रेस पार्टी (82%) के थे। संविधान निर्माण-निकाय अर्थात् संविधान सभा की कुल सदस्य संख्या 389 निर्धारित की गई जिसमें से 292 प्रतिनिधि ब्रिटिश भारत के गवर्नरों के अधीन 11 प्रान्तों से, 4 चीफ कमिश्नरों के 4 प्रान्तों (दिल्ली, अजमेर-मारवाड़, कुर्ग एवं ब्रिटिश ब्लूचिस्तान) से एक-एक तथा 93 प्रतिनिधि भारतीय रियासतों से लिए जाने थे। संविधान सभा के गठन हेतु ब्रिटिश भारत के प्रान्तों को आवंटित 296 स्थानों के लिए जुलाई-अगस्त, 1946 में चुनाव हुए जिसमें कांग्रेस को कुल 208 स्थानों पर, मुस्लिम लीग को 73 स्थानों पर तथा यनियनिस्ट पाटी, कम्युनिस्ट पार्टी एवं कृषक प्रजा पार्टी को एक-एक स्थानों पर विजय प्राप्त हुई। संविधान सभा का विधिवत उद्घाटन 9 दिसम्बर, 1946 को हुआ।
13 दिसम्बर, 1946 को जवाहरलाल नेहरू ने संविधान सभा में अपना ऐतिहासिक उद्देश्य प्रस्ताव पेश किया जिसमें भारत के भावी । प्रभुतासम्पन्न लोकतान्त्रिक गणराज्य की रूपरेखा निहित थी। इस 'उददेश्य प्रस्ताव में एक संघीय राजव्यवस्था की परिकल्पना की गई थी, जिसमें अवशिष्ट शक्तियाँ स्वायत्त इकाइयों के पास तथा प्रभता जनता के हाथों में होती। इस प्रस्ताव ने संविधान निर्माण हेतु संविधान सभा को मार्गदर्शी सिद्धान्त एवं दर्शन उपलब्ध कराए। संविधान सभा द्वारा इस 'उददेश्य प्रस्ताव को अन्तत: 22 जनवरी, 1947 को स्वीकार कर लिया गया। डॉ० सचिदानन्द सिन्हा को संविधान सभा का अस्थायी अध्यक्ष चुना गया जिन्होंने संविधान सभा की प्रथम बैठक की अध्यक्षता की।
11 दिसम्बर, 1946 को डॉ० राजेन्द्र प्रसाद संविधान सभा के स्थायी अध्यक्ष चुने गए। बी०एन० राव को संविधान सभा का संवैधानिक सलाहकार चुना गया। संविधान निर्माण हेतु संविधान सभा द्वारा कुल 22 समितियों का गठन किया गया। इनमें प्रमुख प्रारूप समिति का गठन 29 अगस्त, 1947 को किया गया, जिसका अध्यक्ष डॉ० भीमराव अम्बेडकर को चुना गया। प्रारूप समिति के अन्य सदस्य थे-एन० गोपाल स्वामी आयंगर, अल्लादि कृष्णा स्वामी अय्यर, मोहम्मद सादुल्ला, के०एम० मुन्शी, बी०एल० मित्तर एवं डी०पी० खेतान। बाद में बी०एल० मित्तर के स्थान पर एन० माधव राव को तथा डी०पी० खेतान की मृत्यु के उपरान्त उनके स्थान पर टी०टी० कृष्णामाचारी को इस समिति में सम्मिलित किया गया।
26 नवम्बर, 1949 को संविधान सभा द्वारा संविधान को स्वीकार किया गया। संविधान सभा के सदस्यों द्वारा
24 जनवरी, 1950 को संविधान सभा के अन्तिम दिन अन्तिम रूप से संविधान पर हस्ताक्षर किए गए।
26 जनवरी, 1950 को सम्पूर्ण संविधान लागू किया गया तथा भारत को गणतन्त्र घोषित किया गया। आगामी संसद चुनाव तक संविधान सभा को ही 'भारतीय संसद' के रूप में मान्यता प्रदान कर दी गई तथा डॉ० राजेन्द्र प्रसाद को गणतन्त्र भारत का प्रथम राष्ट्रपति नियुक्त किया गया।
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