हिन्दू कोड बिल और आंबेडकर
बाबा साहेब आंबेडकर एक काबिल वकील थे, उन्हें कानून बनाने की प्रक्रिया के बारे में कोई गलतफहमी नहीं थी। स्वतंत्र भारत के कानून मंत्री के रूप में उन्होंने “हिंदू कोड बिल” पर महीनों काम किया। उनका मानना था कि जाति व्यवस्था में महिलाओं को दबा कर रखा जाता है, और इसलिए उनकी सबसे बड़ी चिंता यही थी कि हिंदू कोड बिल को ऐसा बनाया जाए जिसमें महिलाओं को बराबर का अधिकार हो। उन्होंने अपने बिल में महिलाओं को तलाक देने के प्रस्ताव के अलावा विधवा और बेटी को संपत्ति में अधिकार देने का प्रस्ताव रखा था। संविधान सभा ने इसमें अंड़गा डाल दिया (1947 से 1951 तक) और बाद में तो इसे रोक ही दिया गया।
Baba Saheb Ambedkar was a capable lawyer, he had no misconceptions about the law making process. As the Law Minister of independent India, he worked for months on the "Hindu Code Bill". He believed that women are kept under control in the caste system, and therefore his biggest concern was to make the Hindu Code Bill in which women have equal rights.In his bill, he proposed to give rights in property to widows and daughters, besides proposing to divorce women. The Constituent Assembly put an egg in it (from 1947 to 1951) and it was later stopped.
राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने धमकी दी कि वह इस बिल को कानून नहीं बनने देगें। हिंदू साधुओं ने संसद पर धरना दे दिया। उद्योगपतियों और जमींदारों ने धमकी दी कि वे अगले चुनाव में सरकार से समर्थन वापस ले लेगें। परिणामस्वरूप आंबेडकर ने कानून मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। और हिंदुओं ने “हिन्दू कोड बिल” को नहीं पास होने दिया। बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर का भारत के विकास में जितना योगदान रहा है, उतना शायद ही किसी और राजनेता का रहा हो। एक अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, शिक्षाविद् और कानून के जानकार के तौर पर अंबेडकर ने आधुनिक भारत की नींव रखी थी और देश उनके इस योगदान को लेकर आज भी जागरूक नहीं है।
Baba Saheb Ambedkar was a capable lawyer, he had no misconceptions about the law making process. As the Law Minister of independent India, he worked for months on the "Hindu Code Bill". He believed that women are kept under control in the caste system, and therefore his biggest concern was to make the Hindu Code Bill in which women have equal rights.In his bill, he proposed to give rights in property to widows and daughters, besides proposing to divorce women. The Constituent Assembly put an egg in it (from 1947 to 1951) and it was later stopped.
राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने धमकी दी कि वह इस बिल को कानून नहीं बनने देगें। हिंदू साधुओं ने संसद पर धरना दे दिया। उद्योगपतियों और जमींदारों ने धमकी दी कि वे अगले चुनाव में सरकार से समर्थन वापस ले लेगें। परिणामस्वरूप आंबेडकर ने कानून मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। और हिंदुओं ने “हिन्दू कोड बिल” को नहीं पास होने दिया। बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर का भारत के विकास में जितना योगदान रहा है, उतना शायद ही किसी और राजनेता का रहा हो। एक अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, शिक्षाविद् और कानून के जानकार के तौर पर अंबेडकर ने आधुनिक भारत की नींव रखी थी और देश उनके इस योगदान को लेकर आज भी जागरूक नहीं है।
President Rajendra Prasad threatened that he would not allow this bill to become law. Hindu monks sit on the Parliament. Industrialists and landlords threatened that they would withdraw support from the government in the next election. As a result, Ambedkar resigned from the post of Law Minister. And the Hindus did not allow the "Hindu Code Bill" to pass.The contribution of Babasaheb Dr. Bhimrao Ambedkar to the development of India has hardly been that of any other politician. As an economist, sociologist, educationist and law scholar, Ambedkar had laid the foundation of modern India and the country is still not aware of his contribution.
- डॉ. अंबेडकर संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे। उन पर आधुनिक भारत का संविधान बनाने की जिम्मेदारी थी और उन्होंने एक ऐसे संविधान की रचना की जिसकी नजरों में सभी नागरिक एक समान हों, धर्मनिरपेक्ष हो और जिस पर देश के सभी नागरिक विश्वास करें। एक तरह से भीमराव अंबेडकर ने आजाद भारत की रचना की थी। इसके अलावा डॉक्टर अंबेडकर की प्रेरणा से ही भारत के वित्त आयोग की स्थापना हुई थी। डॉ. अंबेडकर के विचार से ही भारत के केन्द्रीय बैंक की स्थापना हुई जिसे आज हम भारतीय रिजर्व बैंक के नाम से जानते हैं। दामोदर घाटी परियोजनाए हीराकुंड परियोजना और सोन नदी परियोजना को स्थापित करने में डॉ. अंबेडकर ने बड़ी भूमिका निभाई थी। भारत में रोजगार का आदान-प्रदान की स्थापना भी डॉक्टर अंबेडकर के विचारों की वजह से हुई थी। भारत में पानी और बिजली के ग्रिड प्रणाली की स्थापना में भी डॉक्टर अंबेडकर का अहम योगदान माना जाता है। भारत को एक स्वतंत्र चुनाव आयोग भी डॉ. भीमराव अंबेडकर की ही देन है। ये वो योगदान है जिन्हें आजादी के बाद की तमाम सरकारों ने हमेशा ही अनदेखा किया है। यानी योजनाएं और विचार अंबेडकर के थे, लेकिन उनका श्रेय दूसरे लोगों ने लूटा। डॉ. अंबेडकर, जवाहर लाल नेहरू की सरकार में प्लानिंग का मंत्रालय चाहते थे लेकिन नेहरू ने अंबेडकर को सिर्फ कानून मंत्रालय दिया। डॉ. अंबेडकर विदेश और रक्षा मामलों की समितियों में सदस्यता चाहते थे, लेकिन नेहरू सरकार ने डॉ. अंबेडकर को ऐसी किसी समिति का सदस्य नहीं बनाया। डॉ. अंबेडकर हिंदुओं में सामाजिक अधिकार और महिलाओं को संपत्ति का अधिकार देने की बात करने वाले हिंदू कोड को समाज सुधार के लिए जरूरी मानते थे लेकिन नेहरू सरकार ने अंबेडकर के मंत्री रहते हुए हिंदू कोड को स्वीकार नहीं किया।
Dr. Ambedkar was the chairman of the drafting committee of the constitution. He had the responsibility of making the constitution of modern India and he designed a constitution in which all citizens should be equal in the eyes, be secular and on which all citizens of the country should trust. In a way, Bhimrao Ambedkar created independent India. Apart from this, the Finance Commission of India was established with the inspiration of Dr. Ambedkar. It was at the thought of Dr. Ambedkar that the Central Bank of India was established, which we now know as the Reserve Bank of India.Dr. Ambedkar played a big role in setting up Damodar Valley Projects, Hirakud Project and Son River Project. The exchange of employment in India was also established due to Dr. Ambedkar's ideas. Dr. Ambedkar is also considered an important contributor to the establishment of water and electricity grid system in India. India also owes an independent Election Commission to Dr. Bhimrao Ambedkar. This is a contribution that has been ignored by all governments since independence. That is, Ambedkar's plans and ideas were credited by others. Dr. Ambedkar wanted a ministry of planning in Jawaharlal Nehru's government, but Nehru gave Ambedkar only the Law Ministry. Dr. Ambedkar wanted membership in the Committees on Foreign and Defense Affairs, but the Nehru Government did not make Dr. Ambedkar a member of any such committee. Dr. Ambedkar, who talked about social rights among Hindus and the right of property to women, considered the Hindu code to be necessary for social reform, but the Nehru government, while being a minister of Ambedkar, did not accept the Hindu code.
डॉ. अंबेडकर को उनकी मौत के 34 वर्षों के बाद 1990 में वीपी सिंह सरकार ने उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया । बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर से जुड़ी तमाम सच्चाइयां है। इन सच्चाइयों को जानना और समझना आधुनिक भारत के निर्माण के लिए बहुत जरूरी हैं। डॉ. अंबेडकर को जातियों की सीमा में बांधना और उन्हें सिर्फ दलितों के मसीहा के तौर पर पेश किया जाना उनके साथ बहुत बड़ा अन्याय होगा ।
Dr. Ambedkar was the chairman of the drafting committee of the constitution. He had the responsibility of making the constitution of modern India and he designed a constitution in which all citizens should be equal in the eyes, be secular and on which all citizens of the country should trust. In a way, Bhimrao Ambedkar created independent India. Apart from this, the Finance Commission of India was established with the inspiration of Dr. Ambedkar. It was at the thought of Dr. Ambedkar that the Central Bank of India was established, which we now know as the Reserve Bank of India.Dr. Ambedkar played a big role in setting up Damodar Valley Projects, Hirakud Project and Son River Project. The exchange of employment in India was also established due to Dr. Ambedkar's ideas. Dr. Ambedkar is also considered an important contributor to the establishment of water and electricity grid system in India. India also owes an independent Election Commission to Dr. Bhimrao Ambedkar. This is a contribution that has been ignored by all governments since independence. That is, Ambedkar's plans and ideas were credited by others. Dr. Ambedkar wanted a ministry of planning in Jawaharlal Nehru's government, but Nehru gave Ambedkar only the Law Ministry. Dr. Ambedkar wanted membership in the Committees on Foreign and Defense Affairs, but the Nehru Government did not make Dr. Ambedkar a member of any such committee. Dr. Ambedkar, who talked about social rights among Hindus and the right of property to women, considered the Hindu code to be necessary for social reform, but the Nehru government, while being a minister of Ambedkar, did not accept the Hindu code.
डॉ. अंबेडकर को उनकी मौत के 34 वर्षों के बाद 1990 में वीपी सिंह सरकार ने उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया । बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर से जुड़ी तमाम सच्चाइयां है। इन सच्चाइयों को जानना और समझना आधुनिक भारत के निर्माण के लिए बहुत जरूरी हैं। डॉ. अंबेडकर को जातियों की सीमा में बांधना और उन्हें सिर्फ दलितों के मसीहा के तौर पर पेश किया जाना उनके साथ बहुत बड़ा अन्याय होगा ।
अंबेडकर ने तो अपने स्कूल जीवन में ही तिरस्कार सहा था। स्कूल में बाकी दलित बच्चों की ही तरह अंबेडकर को भी बाकी सवर्ण बच्चों से अलग बिठाया जाता था। अंबेडकर के संस्कृत शिक्षक ने उन्हें संस्कृत पढ़ाने से ही इनकार कर दिया था। बाकी के शिक्षक अंबेडकर की किताबों को हाथ भी नहीं लगाते थे। अंबेडकर के साथ ये भेदभाव और तिरस्कार सिर्फ स्कूल जीवन तक ही सीमित नहीं रहा। उनका जीवन ऐसे तिरस्कार की घटनाओं से भरा हुआ है । निचली जाति से होने की वजह से अंबेडकर का शोषण हर स्तर पर होता रहा। अंबेडकर जब विदेश से पढ़कर हिंदुस्तान लौटे तो बड़ौदा के महाराजा ने उन्हें अपना सचिव बना दिया। बेशक अंबेडकर का पद बड़ा था लेकिन उनकी नौकरी के दौरान भी कोई उनकी इज्जत नहीं करता था। चपरासी अंबेडकर के हाथ में फाइल पकड़ाने के बजाए फेंक दिया करते थे। उन्हें पीने के लिए पानी नहीं दिया जाता था। मुंबई में अंबेडकर को उनके निचली जाति का होने की वजह से एक पारसी धर्मशाला से बाहर फेंक दिया गया था। उस दौर में अंग्रेजों से लड़ने के लिए पूरा देश खड़ा था तो दलित और शोषित लोगों के अधिकारों के लिए अकेले भीमराव अंबेडकर समाज के उच्च वर्ग और कांग्रेस से संघर्ष कर रहे थे। डॉ अंबेडकर का मानना था देश की तरक्की के लिए देश के हर वर्ग को समानता का अधिकार मिलना जरूरी है। बचपन में हुए भेदभावों की वजह से अंबेडकर हिंदू धर्म को छोड़ना चाहते थे। डॉ. अंबेडकर का मानना था कि हिंदू धर्म को छोड़ना धर्म परिवर्तन नहीं बल्कि गुलामी की जंजीरें तोड़ने जैसा है। डॉ. अंबेडकर की इस घोषणा के बाद हैदराबाद के निजाम समेत कई मुस्लिम संगठनों ने अंबेडकर को धर्म परिवर्तन के ऑफर दिए, लेकिन बाबा साहब ने हर ऑफर को ठुकरा दिया क्योंकि वो अपने समाज के लोगों को इज्जत से जीने वाला धर्म देना चाहते थे इसीलिए वो हिंदू धर्म को छोड़कर 1956 में बौद्ध धर्म की शरण में चले गए।
Dr. Ambedkar was awarded the Bharat Ratna by VP Singh Sarkar in 1990, after 34 years of his death. Baba Saheb has all the truths associated with Dr. Bhimrao Ambedkar. Knowing and understanding these truths are very important for the creation of modern India. It would be a great injustice to tie Dr. Ambedkar to the limits of castes and to project him as the messiah of only Dalits.Ambedkar had suffered reproach in his school life. Like the rest of the Dalit children in school, Ambedkar too was segregated from the other upper caste children. Ambedkar's Sanskrit teacher refused to teach him Sanskrit. The rest of the teachers did not even touch Ambedkar's books. This discrimination and disdain with Ambedkar was not limited to school life alone. His life is filled with incidents of such contempt.Being from a lower caste, Ambedkar was exploited at all levels. When Ambedkar returned to India after studying from abroad, the Maharaja of Baroda made him his secretary. Of course, Ambedkar's post was big, but nobody respected him even during his job. Peons used to throw Ambedkar in his hand instead of holding the file.They were not given water to drink. In Mumbai, Ambedkar was thrown out of a Parsi Dharamshala because of his lower caste. At that time, the whole country stood to fight the British, then Bhimrao Ambedkar was fighting for the rights of the downtrodden and the exploited people against the upper class of the society and the Congress.
Dr. Ambedkar believed that every class of the country should get the right to equality for the country's progress. Ambedkar wanted to leave Hinduism because of the childhood discrimination. Dr. Ambedkar believed that abandoning Hinduism was not a change of religion but breaking the chains of slavery.
After this announcement by Dr. Ambedkar, many Muslim organizations, including the Nizam of Hyderabad, offered to convert Ambedkar, but Baba Saheb turned down every offer because he wanted to give the people of his society a religion that lived with dignity, that's why Leaving Hinduism, he moved to Buddhism in 1956.
15 अगस्त 1947 को आजादी का जश्न डॉ बाबा साहेब अंबेडकर के लिए एक बड़ी जिम्मेदारी लेकर आया। देश की नई सरकार को देश का संविधान बनाने के लिए एक काबिल व्यक्ति की तलाश थी जिसे कानून की जानकारी के अलावा देश और दुनिया की समझ और समाज की जरूरतों बारे में पूरी जानकारी हो और ये तलाश डॉ. अंबेडकर पर ख़त्म हुई। डॉ भीमराव अंबेडकर को देश का पहला कानून मंत्री बनाया गया जिन्होंने अपनी बिगड़ती सेहत के बावजूद महज 2 साल के अंदर देश को एक मजबूत संविधान दिया। अंबेडकर ने 1951 में हिंदू कोड बिल तैयार कर संसद में पेश किया जिसमें महिलाओं को भी समान अधिकार की बात कही गयी। हिंदू कोड बिल के तहत पिता की संपत्ति में बेटी को समान अधिकार, विवाहित पुरूष को एक से अधिक पत्नी रखने पर प्रतिबंध, महिलाओं को भी तलाक का अधिकार शामिल था, लेकिन रूढ़िवादी हिंदू ताकतों और सरकार के अंदर ही बिल का विरोध करने वालों के सामने हिंदू कोड बिल लागू नहीं हो सका और सरकार में अपना प्रभाव घटने से निराश होकर डॉ. अंबेडकर ने 1951 में मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। अपने इस्तीफे में डॉ अंबेडकर ने लिखा--
Dr. Ambedkar was awarded the Bharat Ratna by VP Singh Sarkar in 1990, after 34 years of his death. Baba Saheb has all the truths associated with Dr. Bhimrao Ambedkar. Knowing and understanding these truths are very important for the creation of modern India. It would be a great injustice to tie Dr. Ambedkar to the limits of castes and to project him as the messiah of only Dalits.Ambedkar had suffered reproach in his school life. Like the rest of the Dalit children in school, Ambedkar too was segregated from the other upper caste children. Ambedkar's Sanskrit teacher refused to teach him Sanskrit. The rest of the teachers did not even touch Ambedkar's books. This discrimination and disdain with Ambedkar was not limited to school life alone. His life is filled with incidents of such contempt.Being from a lower caste, Ambedkar was exploited at all levels. When Ambedkar returned to India after studying from abroad, the Maharaja of Baroda made him his secretary. Of course, Ambedkar's post was big, but nobody respected him even during his job. Peons used to throw Ambedkar in his hand instead of holding the file.They were not given water to drink. In Mumbai, Ambedkar was thrown out of a Parsi Dharamshala because of his lower caste. At that time, the whole country stood to fight the British, then Bhimrao Ambedkar was fighting for the rights of the downtrodden and the exploited people against the upper class of the society and the Congress.
Dr. Ambedkar believed that every class of the country should get the right to equality for the country's progress. Ambedkar wanted to leave Hinduism because of the childhood discrimination. Dr. Ambedkar believed that abandoning Hinduism was not a change of religion but breaking the chains of slavery.
After this announcement by Dr. Ambedkar, many Muslim organizations, including the Nizam of Hyderabad, offered to convert Ambedkar, but Baba Saheb turned down every offer because he wanted to give the people of his society a religion that lived with dignity, that's why Leaving Hinduism, he moved to Buddhism in 1956.
15 अगस्त 1947 को आजादी का जश्न डॉ बाबा साहेब अंबेडकर के लिए एक बड़ी जिम्मेदारी लेकर आया। देश की नई सरकार को देश का संविधान बनाने के लिए एक काबिल व्यक्ति की तलाश थी जिसे कानून की जानकारी के अलावा देश और दुनिया की समझ और समाज की जरूरतों बारे में पूरी जानकारी हो और ये तलाश डॉ. अंबेडकर पर ख़त्म हुई। डॉ भीमराव अंबेडकर को देश का पहला कानून मंत्री बनाया गया जिन्होंने अपनी बिगड़ती सेहत के बावजूद महज 2 साल के अंदर देश को एक मजबूत संविधान दिया। अंबेडकर ने 1951 में हिंदू कोड बिल तैयार कर संसद में पेश किया जिसमें महिलाओं को भी समान अधिकार की बात कही गयी। हिंदू कोड बिल के तहत पिता की संपत्ति में बेटी को समान अधिकार, विवाहित पुरूष को एक से अधिक पत्नी रखने पर प्रतिबंध, महिलाओं को भी तलाक का अधिकार शामिल था, लेकिन रूढ़िवादी हिंदू ताकतों और सरकार के अंदर ही बिल का विरोध करने वालों के सामने हिंदू कोड बिल लागू नहीं हो सका और सरकार में अपना प्रभाव घटने से निराश होकर डॉ. अंबेडकर ने 1951 में मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। अपने इस्तीफे में डॉ अंबेडकर ने लिखा--
"आज हिंदू कोड बिल की हत्या कर दी गयी। ऐसे में मेरा मंत्री बने रहने का अर्थ समझ में नहीं आता। बिल में शादी और तलाक संबंधी विधेयक पर दो दिन की चर्चा चली फिर प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने पूरे हिंदू कोड बिल को वापिस लेने की घोषणा कर दी, मैं हैरान रह गया। मैं ये मानने को तैयार नहीं हूं कि तलाक और विवाह संबंधी बिल को समय की कमी के चलते पास नहीं करवाया जा सकता, मुझे प्रधानमंत्री की नीयत पर शक नहीं है लेकिन हिंदू कोड बिल पास कराने के लिए जिस संकल्प और ईमानदारी की जरूरत थी वो उनमें नहीं दिखी।"
अपने इस्तीफे के बाद डॉ. भीमराव अंबेडकर ने ख़ुद राजनैतिक जिम्मेदारी से भले ही अलग कर लिया था लेकिन सामाजिक जिम्मेदारी को वो अपने अंतिम समय तक निभाते रहे। डॉ. भीमराव अंबेडकर को हम तक सिर्फ दलितों के मसीहा और संविधान निर्माता के तौर पर पेश किया गया है लेकिन उनकी भूमिका एक राष्ट्रनेता की रही जो चाहते थे देश का हर वर्ग आजादी की खुली हवा में सम्मान की सांसें ले सके। बाबा साहेब आंबेडकर विश्वमानव थे।
The celebration of independence on 15 August 1947 brought a big responsibility for Dr. Baba Saheb Ambedkar. The new government of the country was looking for a capable person to make the constitution of the country, who, apart from the knowledge of the law, has complete knowledge about the understanding of the country and the world and the needs of the society, and this search ended on Dr. Ambedkar.Dr. Bhimrao Ambedkar was made the first law minister of the country who, despite his deteriorating health, gave the country a strong constitution within just 2 years. In 1951, Ambedkar prepared the Hindu Code Bill and introduced it in Parliament, in which women were also talked about equal rights.Under the Hindu Code bill, father's property included equal rights to daughter, ban on married man having more than one wife, women also had the right to divorce, but in front of conservative Hindu forces and those opposing the bill within the government itself The Hindu Code Bill could not be implemented and Dr. Ambedkar resigned from the post of minister in 1951, disappointed with his influence in the government.In his resignation, Dr. Ambedkar wrote-
"Today the Hindu code bill was assassinated. I do not understand the meaning of being a minister in such a situation. The bill lasted two days on the marriage and divorce bill. Then Prime Minister Jawaharlal Nehru withdrew the entire Hindu code bill. Announced, I was shocked. I am not ready to believe that divorce and marriage bill cannot be passed due to lack of time,I do not doubt the Prime Minister's intentions but the resolve and honesty that was required to pass the Hindu Code Bill was not seen in him. "
After his resignation, Dr. Bhimrao Ambedkar may have separated himself from political responsibility, but he continued to fulfill social responsibility till his last time. Dr. Bhimrao Ambedkar has been introduced to us only as the messiah of Dalits and the creator of the Constitution, but his role was that of a national leader who wanted every section of the country to breathe in the open air of freedom. Baba Saheb Ambedkar was a world man.
"Today the Hindu code bill was assassinated. I do not understand the meaning of being a minister in such a situation. The bill lasted two days on the marriage and divorce bill. Then Prime Minister Jawaharlal Nehru withdrew the entire Hindu code bill. Announced, I was shocked. I am not ready to believe that divorce and marriage bill cannot be passed due to lack of time,I do not doubt the Prime Minister's intentions but the resolve and honesty that was required to pass the Hindu Code Bill was not seen in him. "
After his resignation, Dr. Bhimrao Ambedkar may have separated himself from political responsibility, but he continued to fulfill social responsibility till his last time. Dr. Bhimrao Ambedkar has been introduced to us only as the messiah of Dalits and the creator of the Constitution, but his role was that of a national leader who wanted every section of the country to breathe in the open air of freedom. Baba Saheb Ambedkar was a world man.
हिन्दू कोड बिल भारत में स्वतन्त्रता के पश्चात पारित कई अधिनियमों का समूह है। इसके अन्तर्गत निम्नलिखित अधिनियम आते हैं-
हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, १९५६, हिन्दू विवाह अधिनियम, हिन्दू अप्राप्तवयता और संरक्षकता अधिनियम (Hindu Minority and Guardianship Act), हिन्दू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम (Hindu Adoptions and Maintenance Act)
हिन्दू कोङ बिल की कुछ मुख्य नीयम निम्नलिखित है
1. माँ ही परिवार की मुख्य भूमिका निभाती है क्योकि माँ पूरा दिन परिवार मे रहती हैं और पुरा कार्य करती हैं]]
2. बच्चौ की प्रारंभीक शीक्षा घर पर हि माता पिता द्वारा हो सके
3. बच्चौ को प्रारंभीक शीक्षा के बाद गुरुकुल भेज दिया जाय
2. बच्चौ की प्रारंभीक शीक्षा घर पर हि माता पिता द्वारा हो सके
3. बच्चौ को प्रारंभीक शीक्षा के बाद गुरुकुल भेज दिया जाय|
The Hindu Code Bill is a set of several Acts passed after independence in India. The following Acts come under this-
Hindu succession act, 1956, Hindu Marriage Act, Hindu Minority and Guardianship Act, Hindu Adoptions and Maintenance Act.
Following are some of the main rules of the Hindu Code Bill
1. The mother plays the main role of the family as the mother stays in the family all day and does all the work.]
2. Initial initiation of children can be done at home by parents
3. Children should be sent to Gurukul after initial initiation
The Hindu Code Bill is a set of several Acts passed after independence in India. The following Acts come under this-
Hindu succession act, 1956, Hindu Marriage Act, Hindu Minority and Guardianship Act, Hindu Adoptions and Maintenance Act.
Following are some of the main rules of the Hindu Code Bill
1. The mother plays the main role of the family as the mother stays in the family all day and does all the work.]
2. Initial initiation of children can be done at home by parents
3. Children should be sent to Gurukul after initial initiation
जब भारत आजाद हुआ तब हिंदू समाज में पुरुष और महिलाओं को तलाक का अधिकार नहीं था. पुरूषों को एक से ज्यादा शादी करने की आजादी थी लेकिन विधवाएं दोबारा शादी नहीं कर सकती थी. विधवाओं को संपत्ति से भी वंचित रखा गया था। आजादी के बाद भारत का संविधान बनाने में जुटी संविधान सभा के सामने 11 अप्रैल 1947 को डॉक्टर भीमराव आंबेडकर ने हिंदू कोड बिल पेश किया था. इस बिल में बिना वसीयत किए मृत्यु को प्राप्त हो जाने वाले हिंदू पुरुषों और महिलाओंं की संपत्ति के बंटवारे के संबंध में कानूनों को संहिताबद्ध किए जाने का प्रस्ताव था। यह विधेयक मृतक की विधवा, पुत्री और पुत्र को उसकी संपत्ति में बराबर का अधिकार देता था. इसके अतिरिक्त, पुत्रियों को उनके पिता की संपत्ति में अपने भाईयों से आधा हिस्सा प्राप्त होता। इस विधेयक में विवाह संबंधी प्रावधानों में बदलाव किया गया था. यह दो प्रकार के विवाहों को मान्यता देता था-सांस्कारिक व सिविल. इसमें हिंदू पुरूषों द्वारा एक से अधिक महिलाओं से शादी करने पर प्रतिबंध और अलगाव संबंधी प्रावधान भी थे. यह कहा जा सकता है कि हिंदू महिलाओं को तलाक का अधिकार दिया जा रहा था। विवाह विच्छेद के लिए सात आधारों का प्रावधान था. परित्याग, धर्मांतरण, रखैल रखना या रखैल बनना, असाध्य मानसिक रोग, असाध्य व संक्रामक कुष्ठ रोग, संक्रामक यौन रोग व क्रूरता जैसे आधार पर कोई भी व्यक्ति तलाक ले सकता था। यह बिल ऐसी तमाम कुरीतियों को हिंदू धर्म से दूर कर रहा था जिन्हें परंपरा के नाम पर कुछ कट्टरपंथी जिंदा रखना चाहते थे। इसलिए इसका जोरदार विरोध हुआ । इसलिए आंबेडकर के तमाम तर्क और नेहरू का समर्थन भी बेअसर साबित हुआ. इस बिल 9 अप्रैल 1948 को सेलेक्ट कमेटी के पास भेज दिया गया। बाद में 1951 को आंबेडकर ने हिंदू कोड बिल को संसद में पेश किया. इसे लेकर संसद के अंदर और बाहर विद्रोह मच गया. सनातनी धर्मावलम्बी से लेकर आर्य समाजी तक आंबेडकर के विरोधी हो गए। उस समय भारत का संविधान भी बनकर तैयार था. लेकिन संसद के सदस्यों को जनता ने नहीं चुना था. इन सदस्यों को बहुसंख्यक हिंदू समाज में बदलाव और पुराने रीति-रिवाजों को बदलने का निर्णय करना था. संसद में तीन दिन तक बहस चली। हिंदू कोड बिल का विरोध करने वालों का कहना था कि संसद के सदस्य जनता के चुने हुए नहीं है इसलिए इतने बड़े विधेयक को पास करने का नैतिक अधिकार नहीं है. एक और विरोध इस बात का था कि सिर्फ हिंदुओं के लिए कानून क्यों लाया जा रहा है, बहुविवाह की परंपरा तो दूसरे धर्मों में भी है. इस कानून को सभी पर लागू किया जाना चाहिए. यानी समान नागरिक आचार संहिता संसद में जहां जनसंघ समेत कांग्रेस का हिंदूवादी धड़ा इसका विरोध कर रहा था तो वहीं संसद के बाहर हरिहरानन्द सरस्वती उर्फ करपात्री महाराज के नेतृत्व में बड़ा प्रदर्शन चल रहा था। अखिल भारतीय राम राज्य परिषद की स्थापना करने वाले करपात्री का कहना था कि यह बिल हिंदू धर्म में हस्तक्षेप है. यह बिल हिंदू रीति-रिवाजों, परंपराओं और धर्मशास्त्रों के विरुद्ध है. उन्होंने इस बिल पर प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को वाद-विवाद करने की खुली चुनौती दी। देश के पहले लोकसभा चुनाव के बाद नेहरू ने हिंदू कोड बिल को कई हिस्सों में तोड़ दिया. जिसके बाद 1955 में हिंदू मैरिज एक्ट बनाया गया. जिसके तहत तलाक को कानूनी दर्जा, अलग-अलग जातियों के स्त्री-पुरूष को एक-दूसरे से विवाह का अधिकार और एक बार में एक से ज्यादा शादी को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया । इसके अलावा 1956 में ही हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, हिंदू दत्तक ग्रहण और पोषण अधिनियम और हिंदू अवयस्कता और संरक्षकता अधिनियम लागू हुए। ये सभी कानून महिलाओं को समाज में बराबरी का दर्जा देने के लिए लाए गये थे. इसके तहत पहली बार महिलाओं को संपत्ति में अधिकार दिया गया. लड़कियों को गोद लेने पर जोर दिया गया। आज भी कुछ सवर्ण जाति के लोग ऊंची सोच को ऊंची जाति से जोड़ देते हैं। अगर सवर्ण महिलाएं भी इस नैरेटिव में विश्वास रखती हैं, तो वे इतिहास के साथ अन्याय कर रही हैं। वे यह भूल रही हैं कि जब ऊंची जाति के मर्द महिलाओं को पीछे छोड़कर मर्दवादी समाज को आगे ले जाना चाहते थे, तब एक दलित खुद लेटकर उनके और उनके अधिकारों के बीच पुल बन गया था।
When India became independent, men and women did not have the right to divorce in Hindu society. Men had the freedom to marry more than one but widows could not marry again. Widows were also denied property. After independence, the Hindu Code Bill was introduced by Dr. Bhimrao Ambedkar on 11 April 1947 in front of the Constituent Assembly which was making the Constitution of India. The bill proposed to codify laws regarding the sharing of property of Hindu men and women who died without a will.The Bill gave equal rights to the deceased's widow, daughter and son in his property. Additionally, daughters would receive half of their father's property from their brothers. The provisions related to marriage were changed in this bill. It recognized two types of marriages -Cultural and civil. There were also provisions related to the prohibition of Hindu men marrying more than one woman, and segregation. It can be said that Hindu women were being given the right to divorce. There was a provision of seven grounds for the separation of marriage. Any person could get divorced on grounds of abandonment, conversion, keeping or becoming a mistress, incurable mental disease, incurable and infectious leprosy, infectious sexual disease and cruelty.The bill was removing all such evils from Hinduism, which some fundamentalists wanted to keep alive in the name of tradition. Therefore, it was strongly opposed. Therefore, all the arguments of Ambedkar and the support of Nehru proved ineffective. The bill was sent to the Select Committee on 9 April 1948.
Later on 1951, Ambedkar introduced the Hindu Code Bill in Parliament. A rebellion took place inside and outside Parliament. Sanatani went against Ambedkar from Dharmavalambi to Arya Samaji. The Constitution of India was also ready at that time. But the members of Parliament were not elected by the public. These members had to decide to change the majority Hindu society and change the old customs. The debate lasted for three days in Parliament.
Those opposing the Hindu Code Bill had said that the members of Parliament are not elected by the people, therefore there is no moral right to pass such a big bill. Another protest was that why laws are being brought only for Hindus, the tradition of polygamy is also in other religions. This law should be applied to all. This means that while the Hinduist faction of the Congress, including the Jana Sangh, was opposing it in the Uniform Civil Code of Conduct, there was a big protest outside the Parliament under the leadership of Hariharanand Saraswati alias Karpatri Maharaj.
Karpatri, who founded the All India Ram Rajya Parishad, said that this bill is an intervention in Hinduism. This bill is against Hindu customs, traditions and theology. He openly challenged Prime Minister Jawaharlal Nehru to debate this bill. After the country's first Lok Sabha elections, Nehru broke the Hindu Code Bill in several parts. After which the Hindu Marriage Act was enacted in 1955. Under this, the legal status of divorce, the right of men and women of different castes to marry each other and more than one marriage at a time was declared illegal. Also in 1956, Hindu Succession Act, Hindu Adoption and Nutrition Act and Hindu Minority and Guardianship Act came into force. All these laws were brought to give women equal status in society. Under this, women were given property rights for the first time. The emphasis was on adopting girls.
Even today some upper caste people associate high thinking with upper caste. If the upper caste women also believe in this narrative, then they are doing injustice to history. She is forgetting that when the upper caste men wanted to leave the women behind and take forward the masculine society, then a Dalit lying down became a bridge between them and their rights.
When India became independent, men and women did not have the right to divorce in Hindu society. Men had the freedom to marry more than one but widows could not marry again. Widows were also denied property. After independence, the Hindu Code Bill was introduced by Dr. Bhimrao Ambedkar on 11 April 1947 in front of the Constituent Assembly which was making the Constitution of India. The bill proposed to codify laws regarding the sharing of property of Hindu men and women who died without a will.The Bill gave equal rights to the deceased's widow, daughter and son in his property. Additionally, daughters would receive half of their father's property from their brothers. The provisions related to marriage were changed in this bill. It recognized two types of marriages -Cultural and civil. There were also provisions related to the prohibition of Hindu men marrying more than one woman, and segregation. It can be said that Hindu women were being given the right to divorce. There was a provision of seven grounds for the separation of marriage. Any person could get divorced on grounds of abandonment, conversion, keeping or becoming a mistress, incurable mental disease, incurable and infectious leprosy, infectious sexual disease and cruelty.The bill was removing all such evils from Hinduism, which some fundamentalists wanted to keep alive in the name of tradition. Therefore, it was strongly opposed. Therefore, all the arguments of Ambedkar and the support of Nehru proved ineffective. The bill was sent to the Select Committee on 9 April 1948.
Later on 1951, Ambedkar introduced the Hindu Code Bill in Parliament. A rebellion took place inside and outside Parliament. Sanatani went against Ambedkar from Dharmavalambi to Arya Samaji. The Constitution of India was also ready at that time. But the members of Parliament were not elected by the public. These members had to decide to change the majority Hindu society and change the old customs. The debate lasted for three days in Parliament.
Those opposing the Hindu Code Bill had said that the members of Parliament are not elected by the people, therefore there is no moral right to pass such a big bill. Another protest was that why laws are being brought only for Hindus, the tradition of polygamy is also in other religions. This law should be applied to all. This means that while the Hinduist faction of the Congress, including the Jana Sangh, was opposing it in the Uniform Civil Code of Conduct, there was a big protest outside the Parliament under the leadership of Hariharanand Saraswati alias Karpatri Maharaj.
Karpatri, who founded the All India Ram Rajya Parishad, said that this bill is an intervention in Hinduism. This bill is against Hindu customs, traditions and theology. He openly challenged Prime Minister Jawaharlal Nehru to debate this bill. After the country's first Lok Sabha elections, Nehru broke the Hindu Code Bill in several parts. After which the Hindu Marriage Act was enacted in 1955. Under this, the legal status of divorce, the right of men and women of different castes to marry each other and more than one marriage at a time was declared illegal. Also in 1956, Hindu Succession Act, Hindu Adoption and Nutrition Act and Hindu Minority and Guardianship Act came into force. All these laws were brought to give women equal status in society. Under this, women were given property rights for the first time. The emphasis was on adopting girls.
Even today some upper caste people associate high thinking with upper caste. If the upper caste women also believe in this narrative, then they are doing injustice to history. She is forgetting that when the upper caste men wanted to leave the women behind and take forward the masculine society, then a Dalit lying down became a bridge between them and their rights.
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