Tuesday, 5 May 2020

राज्य के नीति निर्देशक तत्व (DPSP)

       भरतीय संविधान के भाग चार के अन्तर्गत अनुच्छेद 36 से 51 तक राज्य के नीति निर्देशक तत्व का वर्णन किया गया है। जो कि आयरलैण्ड के संविधान से प्रभावित है। हमारे संविधान में कल्पित सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय को पाने के लिए इस भाग में प्रयास किया गया है इन लक्ष्यों के पाना राज्य का कर्त्तव्य है यद्यपि इसके लिए राज्य को बाध्य नही किया जा सकता।

अनुच्छेद 36 राज्य की भाषा जैसा  की अनुच्छेद 12 में है।

अनुच्छेद 37 इस भाग में अर्न्तदृष्टि उपबन्ध किसी न्यायालय द्वारा परिवर्तनीय लागू नही होगें किन्तु फिर भी इनमे अधिकथित तथ्य देश के शासन में मूलभूत है और विधि बनाने में तत्वों को लागू करना राज्य का कर्त्तव्य होगा।

अनुच्छेद 38
1. राज्य लोक कल्याण की अभिवृद्धि के लिए सामाजिक व्यवस्था बनायेगा।
2. सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय की स्थापना के दिशा में राज्य प्रयास करेगा।
3. राज्य आय की असमानताओ को दूर करने का प्रयास करेगा।

अनुच्छेद 39
1. समान कार्य के लिए समान वेतन।
2. समुदाय के भौतिक संसाधनो का स्वामित्व और नियन्त्रण इस प्रकार बटा हो जो सामूहिक हित का सर्वोत्तम रूप से साधन हो।

अनुच्छेद 39(a) समान न्याय और निशुल्क विधि सहायता ।

अनुच्छेद 40 (ग्राम पंचायतो का संगठन) : राज्य ग्राम पंचायतो का संगठन करने के लिए कदम उठायेगा और उनको ऐसी शक्तिया और प्राधिकार प्रदान करेगा, जो उन्हे स्व शासन की ईकाईयों के रूप में कार्य करने योग्य बनाने के लिए आवश्यक होगी।

अनुच्छेद 41 कुछ दशाओ में काम, शिक्षा और लोक सहायता पाने का अधिकार।

अनुच्छेद 42 काम की न्यायसंगत और मनोयोचित दशाओ का तथा प्रसूत सहायता पाने का उपबन्ध।

अनुच्छेद 43
1. कर्मगारो के लिए निर्वाह मजदूरी आदि।
2.  कुटीर उद्योगो को बढ़ावा देना।

अनुच्छेद 43(a) उद्योगो के प्रबन्ध में कर्मगारो का भाग लेना।

अनुच्छेद 44 सभी नागरिको के लिए समान सिविल संहिता।

अनुच्छेद 45 : 6 से 14 वर्ष के बच्चो को मौलिक अधिकारों से 86 वे संविधान संशोधन 2002 द्वारा हटा दिया गया है 0-6 वर्ष के बच्चों को इसके स्थान पर जोड़ा गया है। राज्य के द्वारा यह व्यवस्था किया गया है कि 0-6 वर्ष के बालकों के बाल्यकाल तथा शिक्षा के लिए प्रबन्ध करेगा।

अनुच्छेद 46 समाज के दूर्बल वर्गा के शिक्षा और अर्थ सम्बन्धि हितो की अभिवृद्धि।

अनुच्छेद 47 पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊँचा करने तथा लोक स्वस्थ्य का सुधार करने का राज्य का अधिकार होता है।

अनुच्छेद 48(a) पर्यावरण का संरक्षण तथा संविधान तथा वन्य जीवो की रक्षा।

अनुच्छेद 49 राष्ट्रीय महत्व के स्मारको स्थानो और वस्तुओ का संरक्षण।

अनुच्छेद 50 कार्यपालिका से न्यायापालिका का पृथकरण।

अनुच्छेद 51 अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा की अभिवृद्धि।


मौलिक कर्त्तव्य भाग चार ए अनुच्छेद 51(a)

सरदार स्वर्ण सिंह समिति के सिफारिश पर 42वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 द्वारा जोड़ा गया।



1. भारत के प्रत्येक नागारिक का यह कर्त्तव्य  होगा कि वह संविधान का पालन करे। और उसके आदर्शो संस्थाओ राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करें।

2. स्वतन्त्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शो को हृदय में संजोय रखे और उनका पालन करें।

3. भारत की प्रभुत्ता, एकता, अखण्डता, की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखें।

4. देश की रक्षा करे और आवाहन किये जाने पर राष्ट्र की सेवा करें।

5. भारत के सभी लोगो में समरता और समानभाव की भावना का निर्माण करे जो धर्म, भाषा, प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो ऐसी प्रथाओ का त्याग करे स्त्रियों का सम्मान करें।

6. हमारी संस्कृति, की गौरवशाली परम्परा का महत्व समझे और उसका परिलक्षित करें।

7. प्राकृतिक पर्यावरण की जिसके अन्तर्गत वन झील नदी और वन्य जीव है; रक्षा करें और उसका संवर्धन (बढ़ावा) तथा प्राणी मात्र के प्रति दया भाव रखें।

8. वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद (एम0एन0 राय जनक) ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करना।

9. सार्वजानिक सम्पत्ति को सुरक्षित रखे और हिंसा से दूर रहे।

10. व्यक्तिगत व सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नयी ऊँचाईयों को छूले।

11. यदि माता-पिता या संरक्षक है, यह कर्त्तव्य होगा की वह अपने बालक या प्रतिपाल के लिए 06-14 के बीच शिक्षा के अवस प्रदान करें। (इसे संविधान में 2002 में जोड़ा गया।)





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